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11. राजनीति

राजनीति... झूठ की खेती पर बना महल क्या आलिशान है ? जितनी खोटी नीयत, उतनी ही फरेबी जुबान है, तेरी नादानी पर हमें तो हंसी बहुत ही आती है, खुदा तेरी सब खैरियत रखे, हम तो इंसान आम हैं,

10. खैरियत पूछने वाला ...

खैरियत पूछने वाला सब शुभचिंतक नहीं होता है, रजाई ओढ़कर घी पीने वाला भी यहां खूब रोता है,  शराबियों को पकड़ने की आपाधापी खूब मची है, जरा उन्हें भी पकड़िए जो इंसानों का खून पीता है,

9. कलमकार की ख्वाहिश

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कलमकार की ख्वाहिश नहीं आह की कोई चिंता, नहीं वाह की है ख्वाहिश, निष्पाप मां करूं तेरी साधना, मेरे मस्तिष्क को रखना पवित्र... विवेक रखना मेरा शुद्ध, साहस से करना नहीं वंचित, मानवीय पीड़ाओं का मैं, वर्णन कर सकूं बेबाक सचित्र... शब्द मेरे हो इतने अनमोल, छलियों को करे अचंभित, वेदनाओं का करूं ऐसा वर्णन, पल में पत्थर हो जाये द्रवित, माया की तराजू तोले नहीं, बदले कभी नहीं मेरा चरित्र, कलम बंधन में बंधे सके, मुझे बनाना नहीं इतना दरिद्र, निश्चिंत रहूं मैं इतना, निर्बल का कर सकूं जिक्र, हक की लड़ाई का हो मामला, किसी तीस मार खां का ना करूं फिक्र, मजबूर कर सके कोई नहीं, लालसाएं हो इतना सीमित, गलतियां ख़ुद की स्वीकार करूं, मेरे दिल को रखना पवित्र... कपटियों का भय कम नहीं हो, विचारधारा हो नहीं मेरा दूषित, मेहरबानी तेरी मुझपर इतनी रहे, नई रचना तेरे चरणों में करता रहूं अर्पित,

8. वाग्देवी का आशीष

वाग्देवी का आशीष भांति भांति के लोग यहां, भांति भांति के विचार, सोच, समझ कीजिए भरोसा, परखिए मिश्री, फिटकरी का व्यवहार, मान सबको प्यारा लगे, मार्गदर्शन करे अपमान, मूर्ख धनानंद की धृष्टता, मौर्य का हुआ उत्थान, बदनामी से डरिये नहीं , बदगुमानी है बड़ा रोग, नित्य आगे बढ़ते रहिये, विजय रहस्य है मनोयोग, संवाद में बहुत शक्ति है, विवाद करे ऊर्जा ह्रास, समय कीजिए नहीं व्यर्थ, कीजिए नहीं कभी उपहास, भय में याद आते भगवान, जिनकी इच्छा हम बने इंसान, व्यर्थ रहा कृष्ण का भी ज्ञान, निज स्वार्थ में पतित सर्वोपरि संतान, निंदा में आनंद बहुत है, बुद्धि करता यह भ्रष्ट है, विवेकवान दूरी बनाते हैं, वाग्देवी का आशीष पाते हैं,

7. जीवनधारा...

जीवनधारा ---------------------------------------------- कोई नहीं चाहे गम यहां पर, खुशियां ही सबको है प्यारा, चलता नहीं किसी का वश, यही है धुवसत्य जीवनधारा, माया जाल में गोता लगाएं, ज्ञान, धन या रुतबा जुटाएं, कितना भी कर लें हमारा तुम्हारा, मृत्यु द्वार तक ले जाये जीवनधारा, बेचा ईमान, चाहे किया महादान, करती यह है, सबका कल्याण, सेठ, साहूकार या हो निर्धन - बेसहारा, सबकी नाव खेबे यही जीवनधारा, जन्म मृत्यु का जीवन चक्र, खुशी और गम इसका किनारा, करे चाहे हम लाख जतन, निर्बाध, उन्मुक्त यह है बंजारा, रहो चिंतामुक्त, करो सत्कर्म, रहेगा अमर, कृति और जीवन, जब तलक रहेगा चांद सितारा, यही पावन संदेश देता जीवनधारा...

6. जुनून की ज्वाला ...

जुनून की ज्वाला... --------------------------------------------- घनघोर अंधकार से जब घिरा हो मन, राहें सब ओझल, मझधार में हो जीवन, देवता हो कुपित, मुंह मोड़ ले परिजन, जीवन से निराश, विचलित हो अंतर्मन, ऐसे में बंधु तुम बिल्कुल मत घबराना, सारी दुनियां को थोड़ी देर भूल जाना, सिर्फ किताबों से तुम कर लेना याराना, समस्याएं सारी होंगी हल, इज्जत करेगा जमाना। अपेक्षाओं की बोझ से दब क्यों मर रहा है, क्या होगा कल, क्यों इतना डर रहा है, मत हो नर निराश, कर छोटा सा प्रयास, केंद्रित कर अपनी ऊर्जा, लिख नया इतिहास, आंख दिखाने वाले भी एक दिन आंख झुकाएंगे, था एक मेहनती आदमी, शौक से सबको बताएंगे, आओ करें प्रण, जुनून की ज्वाला है जलाना, चुनौतियों के समंदर में हमें खुद को है आजमाना...।

5. अमावस्या की रात उसे किसी ने नहीं बुलाया था ...

अमावस्या की रात उसे किसी ने नहीं बुलाया था ... सितारों की महफ़िल में चाँद को बुलावा आया था,  फ़िर भी ना जाने क्यों उसका आँख भर आया था,  चाँदनी रात में तन्हा भी वह बहुत ख़ुश था,  अमावस्या की रात उसे किसी ने नहीं बुलाया था... महफ़िल की अंदाजे बयां कुछ इस कदर सिर चढ़ कर बोल रही थी,  हर दिल-अजीज अपने शान-शौकत से दूसरे के आबरू को तौल रही थी,  चाँद को यह खुशनुमा महफ़िल बिल्कुल भी रास नहीं आया था,  अमावस्या की रात किसी ने उसे नहीं बुलाया था ... अचानक हीं चाँद के दिल में यह  ख्याल आया था,  इन्हीं सितारों ने हीं उसे बहुत रुलाया था,  वक्त ने चाँदनी रात फ़िर से ख़ूबसूरत बनाया था,  अमावस्या की रात उसे किसी ने नहीं बुलाया था... सितारों के बीच उसने अपने अस्तित्त्व को विलुप्त पाया था,  उसके जख्मों पर मरहम लगाने तब कोई नहीं आया था,  जख्मों से ज्यादा इसी तन्हाई ने उसे रुलाया था,  अमावस्या की रात उसे किसी ने नहीं बुलाया था ... सितारों ने चाँद का इजहार कर अपनी क़िस्मत पर इतराया था,  चाँद के आने से महफ़िल में कुछ ऐसा हीं रौनक आया था,  वक्त ने उसे आज एक बार फ़िर बहुत रुलाया था,  अमावस्या की रात उसे किसी ने नहीं बुल